Tuesday, 30 December 2014

शाबर बगला मुखी शत्रु जिह्वा कीलन प्रयोग

जय माँ तारा।
श्री सद्गुरु चरणं शरणम ममः
प्रिय आत्मन !
आज जो मंत्र व् विधान बताने जा रहा हूँ वह दुर्लभ तो है ही साथ में तुरन्त परिणाम भी देने वाला है
मै स्वम् प्रयोगों को करके अनुभव करता हूँ फिर आप को बताता हूँ  अन्यथा नही ...
इस मंत्र का उत्पत्ति की कहानी भी बड़ी ही रोचक है
बंगाल में एक व्यक्ति था जो हकलाता था बात करते समय
इस समस्या का समाधान उसने अपने गुरु से पूछा
तो गुरु ने कहा की तेरी जिह्वा को बगला जी ही खिंच के ठीक कर सकती है
तू उसी देवी की उपसना कर
उनका बीज मंत्र यह है ( ह्लीं )
फिर क्या था
उसने गुरु से मंत्र व् विधान प्राप्त कर लग गया साधना करने
जब वोह जाप करने लगा तो हकलाने की वजह से ठीक से उच्चारण नहीं कर पाता था
वह एक बार बीज उच्चारण करने के लिए बहुत मेहनत करता था
।। हिलि हिलि हिलिम स्वाहा ।।
इस प्रकार से उच्चारण करता था किन्तु पूर्ण समर्पण के साथ
माँ को और चाहिए भी क्या ?
समर्पित है तो माँ को ओर कोई दोष नहीं दिखती
की वह उच्चारण सही किया की नहीं
माला फेरा की नहीं
स्टेप बाय स्टेप किया की नहीं
कुछ नही
माँ को बस समर्पण चाहिए होता है
बस फिर क्या था माँ आ गयी उसके सामने और बोलने लगी के
जा आजके बाद तू कभी हकलायेगा नही
यह सुनकर व् माँ को देखकर वह इतना भाव बिभोर हो गया की उसे यह सुध ही नहीं की माँ उस से बात कर रही हैं
माँ ने उसको चेताया
तो वह महान बगला उपासक बिना हकलाये कहने लगा की
माँ मुझे पहले जैसा ही बना दे
मुझे नहीं बोलना दुसरो की तरह
तो माँ ने पूछा ऐसा क्यों बोल रहा हैं ??
तूने जो मांगा वह तो तुझे दे दिया
तेरी साधना का फल स्वरुप तू अब कभी हकलायेगा नही
वह साधक अब माँ के सामने एक बच्चे की तरह रोने लगा और बोलने लगा
नहीं माँ मेरी हकलाहट की वजह से  तूने दर्शन दिए
मै इसे नही छोड़ सकता
तब माँ तारा ने जो ज्ञान दिया व् रहस्य खोले
सब सुनकर उसके होश उड़ गए
माँ ने कहा
बेटा तेरे गुरु ने जो मन्त्र दिया था तूने तो उसका एक बार भी जाप नही किया
जाप करने का प्रयास किया
और इसी प्रयास के दौरान तूने गुरु व् देव् भावना से पुटित
शाबर बगला मंत्र का रचना कर दिए
और मै उसी कारण ही प्रकट हुई
तूने  ( हिलि हिलि हिलिम स्वाहा )  जाप किया हर एक मनके पर
और जो फल मिलना चाहिए था तुझे मिल गया
किन्तु तेरे इस। समर्पण से मै प्रसन्न हूँ
आज तुझे एक वरदान देता हूँ
आज के बाद जो भी इस मंत्र का जप करेगा
उसके समस्त शत्रुओं की वाणी स्तंभित हो जायेगा
पीठ पीछे बुराई नहीं कर पायेगा व् विषम परिस्थितियो में उसकी सुरक्षा के लिए डाकिनियाँ पहुँच जायेंगे
इतना कहकर माँ अंतर्ध्यान हो गयी
वह उठा और भागते हुए गुरु जी के आगे पूरा वृतांत कह सुनाया तो गुरु जी ने उसे गले से लगा लिए
धीरे धीरे उसकी ख्याति चहुँ ओर फ़ैल गया
उसके गुरु के ब्रह्मलीन होने के बाद वह ही दीक्षा देता था लोगो को
किन्तु मंत्र वही देता था
।। हिलि हिलि हिलिम स्वाहा ।।
विधान ........
वस्त्र आसनी लाल
आसन सिद्धासन
दिशा उत्तर
माला रुद्राक्ष के
दिन कोई भी
समय कभी भी
अवधि जब तक आप की रूचि हो
कितनी माला जप ??
जितना ज्यादा आप आराम से कर सकते हो
पूजन मानसिक करना है
आप चाहे तो माँ की एक चित्र के सामने। द्वीप धुप जलाके सङ्कल्प कर जाप शुरू कर सकते है
आपको कुछ समस्या हो इस पोस्ट को लेकर तो मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं
+918123468271
जय माँ तारा
जय गुरु वाम

Monday, 3 February 2014

sabar siddh saraswati sadhna

                             

           
सरस्वती  नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी 
                                             विद्यारम्भ  करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा 


यही तो है वोह श्लोक जिसका पाठ हमारे पूर्वज कभी किया करते थे विद्या अर्थात वेद पुराणों की पाठ शुरू करने से पहले ..

किन्तु हम तो भाई मॉडर्न युग में जीते है  क्या श्लोक और क्या विद्या की देवी ..?

हमने तो ऐसे लोगो को भी देखा है जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी सरस्वती माता की पूजा नहीं की किन्तु फिर भी वेह उच्च शिक्षित है ..मुझे नहीं पता इसका कारण क्या है और ना ही जानना चाहता हूँ ..

आज आप के सामने माँ सरस्वती का एक बंगाली स्वम् सिद्ध साबर मंत्र की साधना विधान  रख रहा हूँ ..
अगर आप इसे कर लेते है तो उत्तम और नहीं भी करेंगे तो भी उत्तम ..
आप के करने या ना करने से मुझे या माँ को कोई फर्क नहीं पड़ता ..
माँ ने मुझे काम सौपा हे आप तक यह साधना पहुँचाने का तो मैंने पहुंचा दिए मेरा काम ख़त्म और आप का काम शुरू ..

कुछ विशेष तथ्य है सरस्वती माता के विषय में  जो आप को जानना चाहिए ..

हम ज्यादातर जिन देवी देवताओ की पूजा करते है वेह सभी ज्यादातर ऋगवेद के अंतर्गत ही आते है ..
उन सभी देवी देवताओ की पूजा मंत्र ध्यान विधि सब ऋगवेद में ही लिखा हुआ है ..

और सबसे मजेदार बात यह की ऋगवेद में भी दो दो सरस्वती का वर्णन मिलता है .. और कुछ स्तोत्रं में भी दो सरस्वती का उल्लेख मिलता है ..

एक सरस्वती जिन्हें यज्ञाग्नि या सूर्यकिरण की देवी कहा गया है ..
उनके शरीर के तेजोमय ज्योति से स्वर्ग ,मर्त्य, अंतरिक्ष  उज्वल हो उठते है.. उनकी तेज से समस्त ब्रह्माण्ड को सृजन तत्व प्राप्त होता है और उन्ही की दृष्टि मात्र से ब्रह्मा रचना करने में सक्षम होते है ..

दूसरा है   नदी सरस्वती ..जो उस युग में एक मात्र ऐसा नदी था जिसके जल पीने मात्र से लोग रोग रहित हो उठते थे .. जिसके जल का पान करने से मनुष्य को अमृत तुल्य द्रव्य प्राप्त होता था ... और इसी नदी को ही पहले के युग में ऋषि मुनिओ ने नाम दिया ज्योतिर्मयी स्वर्गनदी  अमृत सरस्वती ..

किन्तु मेरे आत्मन इन दोनो  सरस्वती का विद्या से कोई संबंध नहीं है ..

बाद में जब वैदिक परंपरा में सरस्वती का परिचय लुप्त हो गया तब  ब्राह्मणों ने अथर्ववेद में व पुराणों में सरस्वती का शाब्दिक अर्थ विद्या से जोड़ दिया और तब से विद्या की देवी सरस्वती को ही माना जाता है ..

जैसा की मैंने पहले ही नील सरस्वती साधना में कहा था हजारो हजारो सरस्वती को जन्म देने वाली एक नील तारा अर्थात नील सरस्वती माँ है ..

और फिर ऋषियो ने इन सरस्वतियो की बिभिन्न मन्त्र रचना किये लोक कल्याण के लिए .. जिन्हें आज भी हम प्रयोग कर के लाभ प्राप्त करते रहते हे ...

और उन्ही मंत्रो में से एक मंत्र जिसे साबर सिद्ध सरस्वती देवी कहा जाता है जिसका पाठ करने मात्र से बड़े  बड़े श्लोक.. लम्बा मंत्र या बीजात्मक मंत्र पूर्ण शुद्धता के साथ आप याद भी कर लेंगे..

 और जब भी उन मंत्रो का प्रयोग करना हो तो बस एक बार इस मंत्र का उच्चारण करने से ही वो मंत्र मन में आ जाता है ..

इसका लाभ विद्यार्थी और  वो साधक भी उठा सकते है जिन्हें  याददस्त संबंधी कोई समस्या है  ..

सामग्री .... श्वेत वस्त्र आसन या लाल ... जाप हेतु रुद्राक्ष की माला .. दिशा उत्तर .. तिथि शुक्ल पक्ष के पंचमी ..समय ब्रह्मा मुहूर्त .. एक माँ सरस्वती का चित्र  घी का दीपक .. श्वेत मिठाई का भोग .. श्वेत फुल .. दिन वस् एक दिन ही .. साधना करने के बाद फोटो या विग्रह को पूजा रूम में ही स्थापित कर दे व दीपक को भी उनके सामने ही स्थापित करदे ..माला को उनके चरणों में ही रख दीजियेगा भविष्य में काम आएगा ..

विधान ....सबसे पहले गुरु पूजन व आज्ञा प्राप्त करे  जैसा की साधना का नियम है वो सभी नियमो का पालन करे  ...

फिर संकल्प लेकर  दोनों हात जोड़ कर माँ तारा से पार्थना करे ...

                                  सरस्वती  नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी 
                                                         विद्यारम्भ  करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा 


फिर माता के चित्र में लघु मंत्र विधान द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करे व योनी मुद्रा प्रदर्शित करे ..
                           ॐ आं ह्रीं क्रों सरस्वत्यै प्रतिष्ठ वरदो स्वाहा .. 

इसके बाद माता को फूलो की माला से सुसज्जित करे दीपक प्रज्वलित कर पंचोपचार पूजन कर के भोग निवेदन करे ..

और फिर रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र का 11 माला जाप  सम्पूर्ण करे  ..

साधना मंत्र ....

                         स्वरोसोती -स्वरोसोती गज दाई  गज मोती मुक्तार हार ..
                                       दाओ माँ आमाय विद्यार भार ..
                                        खाटुक मुखे सदाय सोत्तो कान .. 
                                माँ मनसा देबिर चरणे कोटि कोटि नमस्कार ..

इस मंत्र का अर्थ है ..
हे माँ सरस्वती गजमुक्ता का हार पहनने वाली तू मुझे विद्या प्रदान कर ताकि मेरे मुहं से जो निकले वोह सत्य हो .. और माँ मनसा देवी के चरणों में कोटि कोटि नमस्कार क्योंकि उनकी कृपा से ही वो विद्या जो आप मुझे देंगे वो कभी विषाक्त ना हो ..

 जप समर्पण व क्षमा याचना करने के बाद सरस्वती स्तोत्रं व सरस्वत्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम का का पाठ करे ...
                                                           सरस्वती स्तोत्रं  

                                            श्वेतपद्मासना देवी श्वेतपुष्पोशोभिता
                                                           श्वेताम्बरधरा नित्या स्वेतगंधानुलेपना

                                             श्वेताक्षसूत्रहस्ता च श्वेतचंदनचर्चिता 
                                                                      श्वेतवीणाधरा शुभ्रा श्वेतालंकार भूषिता 
                                              वन्दिता सिद्ध गन्धर्वैरचिता सुरदानवैः
                                                                     पूजिता मुनिभिःसर्वऋषिभिः स्तूयते सदा 

                                               स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगधात्रीं सरस्वतीं
                                                                  ये स्मरन्ति त्रिसन्ध्यायां सर्वविद्यां लभन्ते ते .

                                               इति नीला तंत्रे सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णं .. 

                                                 सरस्वत्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम
               
                                                 सरस्वती महाभद्रा महामाया वरप्रदा ..
                                                           श्रीप्रदा पद्मनिलया पद्माक्षी पद्मवक्त्रगा ..

                                                 शिवानुजा पुस्तकधृत ज्ञानमुद्रा रमा परा..
                                                            कामरूपा महाविद्या महापाताकनाशिनी..

                                                  महाश्रया मालिनी च महाभोगा महाभुजा ..
                                                          महाभागा महोत्साहा दिव्यांगा सुरवन्दिता ..

                                                  महाकाली महापाशा महाकारा महान्कुशा..
                                                       सीता च विमला विश्वा विद्युन्माला च वैष्णवी..

                                                  चन्द्रिका चंद्र्वदना चंद्रलेखाविभूषिता ..
                                                          सावित्री सुरसा देवी दिव्यालंकारभूषिता.. 

                                                 वाग्देवी वसुधा तीव्रा महाभद्रा महाबला ..
                                                            भोगदा भारती भामा गोविंदा गोमती शिवा.. 

                                                  जटिला विंध्यवासा च विंध्याचलविराजिता ..
                                                               चण्डिका वैष्णवी ब्राह्मी ब्रह्मज्ञानैकसाधना ..

                                                  सौदामिनी सुधामुर्तिस्सुभ्र्दा सुरपुजिता..
                                                                सुवासिनी सुनासा च विनिद्रा पद्मलोचना ..

                                               विद्यारुपा विशालाक्षी ब्रह्मजाया महाफला ..
                                                              त्रयीमूर्ति त्रिकालज्ञा त्रिगुणा शास्त्र्रुपिनी ..

                                                       शुम्भासुरप्रमथनी शुभदा च सर्वात्मिका ..
                                                                           रक्तबीजनिहंत्री च चामुंडा चाम्बिका तथा ..

                                                         मुण्डकाय प्रहरणा धूम्रलोचनमर्दाना ..
                                                                     सर्व देव स्तुता सौम्या सुरासुरनमस्कृता ..

                                                       कालरात्रि कलाधरा रूप सौभाग्य दायिनी ..
                                                                  वाग्देवी च वरारोहा वाराही वारिजासना ..

                                                 चित्राम्बरा चित्रगंधा चित्रमाल्यविभूषिता..
                                                                    कांता कामप्रदा वंद्या विद्याधरा सुपूजिता ..

                                                       श्वेतासना नीलभुजा चतुर्वर्ग फलप्रदा ..
                                                                            चतराननसाम्राज्या  रक्त्मध्या निरंजना ..

                                                     हंसासना नीलजिव्हा ब्रह्मा विष्णु शिवात्मिका ..
                                                                          एवं सरस्वती देव्या नाम्नाष्टोत्तरशतम ..

                                              इति श्री सरस्वत्योष्टत्तरशतनामस्तोत्रम संपूर्णम..

फिर से एक बार क्षमा याचना कर गुरु मंत्र का एक माला कर के गुरु देव से साधना के कमियों को दूर करने की पार्थना के साथ साधना समाप्त करे ..
जय माँ तारा 

Thursday, 30 January 2014

navdurga sadhna

नवरात्र साधना विधान  ...

 नवरात्रि को साधारणतः नव दुर्गा  पूजा व साधनाए साधक जन किया करते है ..और उन्ही नवदुर्गाओ की मंत्र ही जपा करते है

किन्तु मेरे आत्मन ! हम तांत्रिक है और तांत्रिक साधनाए ही करते है वैदिक साधना नहीं .. क्योंकि भगवान ने भी यही कहा है की  कलियुग में केवल तांत्रिक मन्त्र और साधनाए ही पूर्ण फल प्रदान करने में सक्षम होंगे ..

 और इसी कारण ही अब की बार नवरात्र में नवदुर्गाओ की जो तत्व है उसी तत्व स्वरूपी महामाया शक्ति का  उन विशिष्ट शक्तिओ की ही पूजा व जाप मंत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ ..

और यह सभी मन्त्र नव दुर्गा के मंत्र से भिन्न है .. क्योंकि मुझे लगता है नव दुर्गा  का अर्थ को समझ कर अगर उसका सार तत्व को ही साधा जाय तो उत्तम होगा ..  क्योंकि तंत्र यह कहता है यही वोह नव निधि है जिसका उल्लेख शास्त्र में आता है ..  माँ तारा की कृपा से आप सब भी नव निधि सम्पन्न हो यही कामना करते हुए आप के सामने पोस्ट को रख रहा हूँ ..

1 शैलपुत्री जो  त्रैलोक्य मोहन कार्य अर्थात तीनो लोको को मोहित कर देने वाली शक्ति है ..
मंत्र ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वजन मनोहारिणी नमः स्वाहा 

2 ब्रह्मचारिणी जो समस्त इच्छाओ को पूरण करने वाली शक्ति है ..
मंत्र ऐं क्लीं सौः कामेश्वरीच्छा काम फल प्रदे देवी नमः स्वाहा 

3 चन्द्रघंटा जो समस्त प्रकार की पापो का हनन करने वाली शक्ति है ..
मंत्र श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं सर्वपापसंहारिके देवी नमः स्वाहा

 4 कुष्मांडा जो सर्व सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति है ..
मंत्र ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः सर्व सौभाग्य प्रदायिनी देवी नमः स्वाहा

5 स्कन्दमाता जो  समस्त प्रकार की कार्य को सिद्धि करने वाली शक्ति है चाहे वो शांति कर्म हो या मारण कर्म..
मंत्र ऐं  ईं हौं सः कामत्रिपुराय नमः स्वाहा

 6 कात्यानी जो सर्व प्रकार की रक्षा करने वाली शक्ति है ..
मंत्र ॐ ह्रीं महायक्षीश्वरी रक्षय रक्षय मम शत्रुनाम भक्षय भक्षय स्वाहा

 7काल रात्रि जो समस्त प्रकार की रोग नाश करने वाली शक्ति है ..
मंत्र ॐ कालि कालि काल रात्रिके मम सर्व रोगान छिन्धि छिन्धि  भिन्दी भिन्दी भक्षय भक्षय नमः स्वाहा

 8 महागौरी जो समस्त प्रकार की आनंद को देने वाली शक्ति है..
मंत्र ह्रीं क्लीं ॐ सर्व आनंद प्रदायिने  नित्य मदद्रवे स्वाहा

 9 सिद्धिदात्री जो समस्त प्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाली है ..
मंत्र स्त्रीं हूँ  फट क्लीं ऐं तुरे तारे कुल्ले कुरु कुल्ले नमः स्वाहा

इन शक्तिओ की मंत्र साधना आप नव रात्र के दौरान कर सकते है ..

विधान व सामग्री ..............

लाल वस्त्र आसनी ..दिशा उत्तर .. माला  रुद्राक्ष की या लाल चन्दन की गले में रुद्राक्ष होना अनिर्वार्य है ..

माँ तारा के चित्र के सामने नौ दीपक शुद्ध घी के प्रज्वलित कर उन दीपकों को नव दुर्गा स्वरुप मान कर नौ दिन लगातार इन्ही दीपकों को प्रज्वलित करे और  गुरु पूजन आज्ञा लेकर बिना संकल्प लिए यह साधना करना होता है ...दीपक बदलना नहीं बस बत्ती छोटा  हो जाय तो उसे बदल दीजियेगा ..


कौलिक शिव एक दिन में एक मंत्र को प्रतिदिन 16 माला और बाकी के भक्त 21 माला जाप करे ...एक एक कर नौ दिन में नौ मंत्र का जाप पूरा हो जाता है ..

इसके बाद दशमी को  सभी सामग्री दीपक फोटो को विसर्जन कर दे .. माला को नहीं ...किसी कुमारी कन्या को भोजन करवाके उनसे आशीर्वाद ले या फिर किसी अनाथ आश्रम में पैसे दान करदे .. अगर आप किसी जरुरतमंद को भी दान कर देते है तो भी विधान पूर्ण माना जायेगा ... जय माँ तारा ..

Sunday, 5 January 2014

तीव्र इच्छा पूर्ती धूमावती साधना

                                                      तिव्र ईच्छा पुर्ति धुमावती साधन-





धूमावती साधना एक सफल अनुभूत और तीव्र प्रभाव युक्त प्रयोग है ..
यह केवल एक दिन की ही साधना है और अपने जो भी इच्छा हो वोह भगवती अवस्य पूरी करती है ..
विषम परिस्थिति में आप यह साधना नौ दिन तक जारी रखे ..
वैसे तोह एक ही दिन बहुत है इस साधना के लिए पर हमारे अन्दर उर्जा के कमी के कारण कभी कभी हमरे द्वारा किया गया साधना सफल नहीं होता है पर इसमें ऐसा नहीं है भगवती अवस्य ही मनोकामना पूरी करती ही है ..


विधान ................
अपने सामने गोबर के उपले ज्वाला के उसमे गुग्गल दाल के धुआ करते रहे साधना के वक्त लगातार धुआ होते रहना अवश्यक है ..

माला रुद्राक्ष की ..11 माला जाप करना है
दिन .. शनी वार . मंगल वार  ,रवि वार , या किसी भी दिन ...
समय रात के महा निशा ..
स्थान जहा आप को सुबिधा हो और कोई परेशां न करे ..
वस्त्र व् आसानी लाल ..
दिशा उत्तर या आप के सुविधा अनुसार ..
आसन  पद्म आसन ..

मंत्र ,,,,,,
आई आई धूमावती माई ..
सुहाग छेड़े कोन कुले जाई ..
धुआ होय धू धू कोरे .
आमार काज ना कोरले .
शिबेर जोटा खोसे भुमिते पोड़े ...

aai aai dhumawati maai..
suhag chhede kon kule jaai ..
dhua hoy dhu dhu kore ..
aamar kaaj naa korle
shiber jota khose bhumite pode..
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जय जय तारा ..
जय वाम ..गुरु वाम ..