सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी
विद्यारम्भ करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा
यही तो है वोह श्लोक जिसका पाठ हमारे पूर्वज कभी किया करते थे विद्या अर्थात वेद पुराणों की पाठ शुरू करने से पहले ..
किन्तु हम तो भाई मॉडर्न युग में जीते है क्या श्लोक और क्या विद्या की देवी ..?
हमने तो ऐसे लोगो को भी देखा है जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी सरस्वती माता की पूजा नहीं की किन्तु फिर भी वेह उच्च शिक्षित है ..मुझे नहीं पता इसका कारण क्या है और ना ही जानना चाहता हूँ ..
आज आप के सामने माँ सरस्वती का एक बंगाली स्वम् सिद्ध साबर मंत्र की साधना विधान रख रहा हूँ ..
अगर आप इसे कर लेते है तो उत्तम और नहीं भी करेंगे तो भी उत्तम ..
आप के करने या ना करने से मुझे या माँ को कोई फर्क नहीं पड़ता ..
माँ ने मुझे काम सौपा हे आप तक यह साधना पहुँचाने का तो मैंने पहुंचा दिए मेरा काम ख़त्म और आप का काम शुरू ..
कुछ विशेष तथ्य है सरस्वती माता के विषय में जो आप को जानना चाहिए ..
हम ज्यादातर जिन देवी देवताओ की पूजा करते है वेह सभी ज्यादातर ऋगवेद के अंतर्गत ही आते है ..
उन सभी देवी देवताओ की पूजा मंत्र ध्यान विधि सब ऋगवेद में ही लिखा हुआ है ..
और सबसे मजेदार बात यह की ऋगवेद में भी दो दो सरस्वती का वर्णन मिलता है .. और कुछ स्तोत्रं में भी दो सरस्वती का उल्लेख मिलता है ..
एक सरस्वती जिन्हें यज्ञाग्नि या सूर्यकिरण की देवी कहा गया है ..
उनके शरीर के तेजोमय ज्योति से स्वर्ग ,मर्त्य, अंतरिक्ष उज्वल हो उठते है.. उनकी तेज से समस्त ब्रह्माण्ड को सृजन तत्व प्राप्त होता है और उन्ही की दृष्टि मात्र से ब्रह्मा रचना करने में सक्षम होते है ..
दूसरा है नदी सरस्वती ..जो उस युग में एक मात्र ऐसा नदी था जिसके जल पीने मात्र से लोग रोग रहित हो उठते थे .. जिसके जल का पान करने से मनुष्य को अमृत तुल्य द्रव्य प्राप्त होता था ... और इसी नदी को ही पहले के युग में ऋषि मुनिओ ने नाम दिया ज्योतिर्मयी स्वर्गनदी अमृत सरस्वती ..
किन्तु मेरे आत्मन इन दोनो सरस्वती का विद्या से कोई संबंध नहीं है ..
बाद में जब वैदिक परंपरा में सरस्वती का परिचय लुप्त हो गया तब ब्राह्मणों ने अथर्ववेद में व पुराणों में सरस्वती का शाब्दिक अर्थ विद्या से जोड़ दिया और तब से विद्या की देवी सरस्वती को ही माना जाता है ..
जैसा की मैंने पहले ही नील सरस्वती साधना में कहा था हजारो हजारो सरस्वती को जन्म देने वाली एक नील तारा अर्थात नील सरस्वती माँ है ..
और फिर ऋषियो ने इन सरस्वतियो की बिभिन्न मन्त्र रचना किये लोक कल्याण के लिए .. जिन्हें आज भी हम प्रयोग कर के लाभ प्राप्त करते रहते हे ...
और उन्ही मंत्रो में से एक मंत्र जिसे साबर सिद्ध सरस्वती देवी कहा जाता है जिसका पाठ करने मात्र से बड़े बड़े श्लोक.. लम्बा मंत्र या बीजात्मक मंत्र पूर्ण शुद्धता के साथ आप याद भी कर लेंगे..
और जब भी उन मंत्रो का प्रयोग करना हो तो बस एक बार इस मंत्र का उच्चारण करने से ही वो मंत्र मन में आ जाता है ..
इसका लाभ विद्यार्थी और वो साधक भी उठा सकते है जिन्हें याददस्त संबंधी कोई समस्या है ..
सामग्री .... श्वेत वस्त्र आसन या लाल ... जाप हेतु रुद्राक्ष की माला .. दिशा उत्तर .. तिथि शुक्ल पक्ष के पंचमी ..समय ब्रह्मा मुहूर्त .. एक माँ सरस्वती का चित्र घी का दीपक .. श्वेत मिठाई का भोग .. श्वेत फुल .. दिन वस् एक दिन ही .. साधना करने के बाद फोटो या विग्रह को पूजा रूम में ही स्थापित कर दे व दीपक को भी उनके सामने ही स्थापित करदे ..माला को उनके चरणों में ही रख दीजियेगा भविष्य में काम आएगा ..
विधान ....सबसे पहले गुरु पूजन व आज्ञा प्राप्त करे जैसा की साधना का नियम है वो सभी नियमो का पालन करे ...
फिर संकल्प लेकर दोनों हात जोड़ कर माँ तारा से पार्थना करे ...
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी
विद्यारम्भ करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा
फिर माता के चित्र में लघु मंत्र विधान द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करे व योनी मुद्रा प्रदर्शित करे ..
ॐ आं ह्रीं क्रों सरस्वत्यै प्रतिष्ठ वरदो स्वाहा ..
इसके बाद माता को फूलो की माला से सुसज्जित करे दीपक प्रज्वलित कर पंचोपचार पूजन कर के भोग निवेदन करे ..
और फिर रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र का 11 माला जाप सम्पूर्ण करे ..
साधना मंत्र ....
स्वरोसोती -स्वरोसोती गज दाई गज मोती मुक्तार हार ..
दाओ माँ आमाय विद्यार भार ..
खाटुक मुखे सदाय सोत्तो कान ..
माँ मनसा देबिर चरणे कोटि कोटि नमस्कार ..
दाओ माँ आमाय विद्यार भार ..
खाटुक मुखे सदाय सोत्तो कान ..
माँ मनसा देबिर चरणे कोटि कोटि नमस्कार ..
इस मंत्र का अर्थ है ..
हे माँ सरस्वती गजमुक्ता का हार पहनने वाली तू मुझे विद्या प्रदान कर ताकि मेरे मुहं से जो निकले वोह सत्य हो .. और माँ मनसा देवी के चरणों में कोटि कोटि नमस्कार क्योंकि उनकी कृपा से ही वो विद्या जो आप मुझे देंगे वो कभी विषाक्त ना हो ..
जप समर्पण व क्षमा याचना करने के बाद सरस्वती स्तोत्रं व सरस्वत्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम का का पाठ करे ...
सरस्वती स्तोत्रं
श्वेतपद्मासना देवी श्वेतपुष्पोशोभिता
श्वेताम्बरधरा नित्या स्वेतगंधानुलेपना
श्वेताक्षसूत्रहस्ता च श्वेतचंदनचर्चिता
श्वेतवीणाधरा शुभ्रा श्वेतालंकार भूषिता
वन्दिता सिद्ध गन्धर्वैरचिता सुरदानवैः
पूजिता मुनिभिःसर्वऋषिभिः स्तूयते सदा
स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगधात्रीं सरस्वतीं
ये स्मरन्ति त्रिसन्ध्यायां सर्वविद्यां लभन्ते ते .
इति नीला तंत्रे सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णं ..
सरस्वत्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम
सरस्वती महाभद्रा महामाया वरप्रदा ..
श्रीप्रदा पद्मनिलया पद्माक्षी पद्मवक्त्रगा ..
शिवानुजा पुस्तकधृत ज्ञानमुद्रा रमा परा..
कामरूपा महाविद्या महापाताकनाशिनी..
महाश्रया मालिनी च महाभोगा महाभुजा ..
महाभागा महोत्साहा दिव्यांगा सुरवन्दिता ..
महाकाली महापाशा महाकारा महान्कुशा..
सीता च विमला विश्वा विद्युन्माला च वैष्णवी..
चन्द्रिका चंद्र्वदना चंद्रलेखाविभूषिता ..
सावित्री सुरसा देवी दिव्यालंकारभूषिता..
वाग्देवी वसुधा तीव्रा महाभद्रा महाबला ..
भोगदा भारती भामा गोविंदा गोमती शिवा..
जटिला विंध्यवासा च विंध्याचलविराजिता ..
चण्डिका वैष्णवी ब्राह्मी ब्रह्मज्ञानैकसाधना ..
सौदामिनी सुधामुर्तिस्सुभ्र्दा सुरपुजिता..
सुवासिनी सुनासा च विनिद्रा पद्मलोचना ..
विद्यारुपा विशालाक्षी ब्रह्मजाया महाफला ..
त्रयीमूर्ति त्रिकालज्ञा त्रिगुणा शास्त्र्रुपिनी ..
शुम्भासुरप्रमथनी शुभदा च सर्वात्मिका ..
रक्तबीजनिहंत्री च चामुंडा चाम्बिका तथा ..
मुण्डकाय प्रहरणा धूम्रलोचनमर्दाना ..
सर्व देव स्तुता सौम्या सुरासुरनमस्कृता ..
कालरात्रि कलाधरा रूप सौभाग्य दायिनी ..
वाग्देवी च वरारोहा वाराही वारिजासना ..
चित्राम्बरा चित्रगंधा चित्रमाल्यविभूषिता..
कांता कामप्रदा वंद्या विद्याधरा सुपूजिता ..
श्वेतासना नीलभुजा चतुर्वर्ग फलप्रदा ..
चतराननसाम्राज्या रक्त्मध्या निरंजना ..
हंसासना नीलजिव्हा ब्रह्मा विष्णु शिवात्मिका ..
एवं सरस्वती देव्या नाम्नाष्टोत्तरशतम ..
इति श्री सरस्वत्योष्टत्तरशतनामस्तोत्रम संपूर्णम..
फिर से एक बार क्षमा याचना कर गुरु मंत्र का एक माला कर के गुरु देव से साधना के कमियों को दूर करने की पार्थना के साथ साधना समाप्त करे ..
जय माँ तारा